सुप्रीम कोर्ट में वक्फ कानून पर सुनवाई पूरी, केंद्र से मांगा जबाव, दो हफ्ते का समय
दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की।
मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की तीन सदस्यीय पीठ ने मामले की सुनवाई की। याचिकाकर्ताओं में कांग्रेस, DMK, AIMIM, YSRCP, आम आदमी पार्टी, अखिल भारतीय मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और अन्य संगठन शामिल हैं। कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर दो हफ्ते के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया।
सुनवाई के प्रमुख बिंदु
वक्फ बाय यूजर पर सवाल: CJI ने पूछा कि वक्फ बाय यूजर का रजिस्ट्रेशन कैसे होगा, जब कई मामलों में दस्तावेज उपलब्ध नहीं होते? उन्होंने कहा कि वक्फ कानून का दुरुपयोग हुआ है, लेकिन वक्फ बाय यूजर को पूरी तरह खत्म करना उचित नहीं। CJI ने प्रिवी काउंसिल के फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि इसे मान्यता दी गई थी।
SG तुषार मेहता का जवाब: सॉलिसिटर जनरल (SG) तुषार मेहता ने कहा कि नया कानून मुसलमानों को ट्रस्ट बनाने की स्वतंत्रता देता है, जिससे वक्फ में संपत्ति सौंपना अनिवार्य नहीं। उन्होंने स्पष्ट किया कि सेंट्रल वक्फ काउंसिल मुख्य रूप से सलाहकारी संस्था है, और इसमें गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति से वक्फ के कार्यों पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
काउंसिल में अधिकतम 22 में से केवल 2 गैर-मुस्लिम सदस्य होंगे, जबकि शिया, अन्य मुस्लिम वर्गों और 2 मुस्लिम महिलाओं को भी प्रतिनिधित्व दिया गया है।
CJI की टिप्पणी: सेंट्रल वक्फ काउंसिल में गैर-मुस्लिम सदस्यों (जैसे पूर्व जज) की नियुक्ति की संभावना पर CJI ने कहा कि जज धर्म से ऊपर उठकर सुनवाई करते हैं। उन्होंने SG की तुलना को खारिज करते हुए कहा कि याचिकाकर्ताओं की दलीलें इस आधार पर कमजोर नहीं हो सकतीं।
हलफनामा देने का आश्वासन: SG ने कहा कि वह काउंसिल की संरचना के बारे में लिखित हलफनामा दाखिल करेंगे और दो हफ्ते में केंद्र का जवाब प्रस्तुत करेंगे।
याचिकाकर्ताओं का तर्क
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह कानून मुस्लिम समुदाय के धार्मिक स्वायत्तता और संपत्ति अधिकारों (अनुच्छेद 14, 15, 25, 26, 300A) का उल्लंघन करता है। वक्फ बाय यूजर की अवधारणा को हटाने, गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति और जिला कलेक्टर को संपत्ति के स्वामित्व का निर्धारण करने का अधिकार देने जैसे प्रावधानों को मनमाना और भेदभावपूर्ण बताया गया है।
केंद्र और समर्थक राज्यों की स्थिति
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कैविएट दाखिल कर सुनवाई से पहले अपना पक्ष रखने की मांग की है।
हरियाणा, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, असम और उत्तराखंड जैसे बीजेपी शासित राज्यों ने कानून का समर्थन करते हुए इसे संवैधानिक और पारदर्शिता बढ़ाने वाला बताया है।
सुप्रीम कोर्ट ने मामले को गुरुवार (17 अप्रैल) के लिए स्थगित कर दिया और केंद्र को दो हफ्ते में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया। CJI ने हिंसा पर चिंता जताते हुए कहा कि जब मामला कोर्ट में है, तो हिंसा नहीं होनी चाहिए।

